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Uttar Pradesh

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

गन्ना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश माना जाता है। फिलहाल भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई प्रजातियां तैयार करली गई हैं। इससे किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन होने की संभावना रहती है। भारत गन्ना उत्पादन के संबंध में विश्व में अलग स्थान रखता है। भारत के गन्ने की मांग अन्य देशों में भी होती है। परंतु, गन्ना हो अथवा कोई भी फसल इसकी उच्चतम पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी अत्यंत आवश्यक है। शोध संस्थान फसलों के बीज तैयार करने में जुटे रहते हैं। हमेशा प्रयास रहता है, कि ऐसी फसलों को तैयार किया जाए, जोकि बारिश, गर्मी की मार ज्यादा सहन कर सकें। मीडिया खबरों के मुताबिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई ऐसी ही किस्में तैयार की गई हैं। यह प्रजातियां बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं को सहने में सक्षम होंगी। साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी सहायक साबित होंगी।

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जानकारी के लिए बतादें कि गन्ने की इस प्रजाति की बुवाई हरियाणा, पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और राजस्थान में की जा सकती है। यहां के मौसम के साथ-साथ मृदा एवं जलवायु भी इस प्रजाति के लिए उपयुक्त है। साथ ही, इसका रंग भी हरा एवं मोटाई थोड़ी कम है। इससे प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उपज मिल जाती है। इसके रस में शर्करा 17 फीसद, पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.22 प्रतिशत है।

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इस किस्म की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जा सकती है। इस हम प्रजाति के गन्ना के रंग की बात करें तो हल्का पीले रंग का होता है। यदि उत्पादन की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में इसका उत्पादन 95 टन गन्ना हांसिल होगा। इसके अंतर्गत 18.60 प्रतिशत शर्करा, पोल प्रतिशक 14.55 प्रतिशत है। किसान इससे अच्छी उपज हांसिल सकते हैं।

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अनुसंधान संस्थान द्वारा लंबे परिश्रम के उपरांत यह किस्म तैयार की है। इसके रस में 17.65 प्रतिशत शर्करा एवं पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.42 प्रतिशत है। इस किस्म के गन्ने की लंबाई थोड़ी कम और मोटी ज्यादा है। इस गन्ने की बुवाई उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में की जा सकती है। यहां का मौसम इस प्रजाति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग भी हल्का पीला होता है। अगर उत्पादन की बात की जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर 91.5 टन उत्पादन मिलेगी।यह किस्म लाल सड़न रोग से लड़ने में समर्थ है।
बैंगन की खेती की संपूर्ण जानकारी

बैंगन की खेती की संपूर्ण जानकारी

दोस्तों आज हम बात करेंगे बैगन या बैंगन की खेती की, किसानों के लिए बैगन की खेती (Baigan ki kheti - Brinjal farming information in hindi) करना बहुत मुनाफा पहुंचाता है। 

बैगन की खेती से किसानों को बहुत तरह के लाभ पहुंचते हैं। क्योंकि बैगन की खेती करने से किसानों को करीब प्रति हेक्टर के हिसाब से 120 क्विंटल की पैदावार की प्राप्ति होती है। 

इन आंकड़ों के मुताबिक आप किसानों की कमाई का अनुमान लगा सकते हैं। बरसात के सीजन में बैगन की खेती में बहुत ज्यादा उत्पादकता होती है। बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक  बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनें रहे।

बैगन की खेती करने का मौसम :

बैगन की बुवाई खरीफ के मौसम में की जाती है। वैसे तो किसान खरीफ के सीजन में विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई करते हैं। जैसे:  ज्‍वार, मक्का, सोयाबीन इत्यादि। 

परंतु बैगन की खेती करने से बेहद ही मुनाफा पहुंचता है। बैगन की फसल की बुवाई किसान वर्षा कालीन के आरंभ में ही कर देते हैं। क्‍यांरियां थोड़ी थोड़ी दूर पर तैयार की जाती है। 

किसान 1 हेक्टेयर भूमि पर 20 से 25 क्‍यारियां लगाते हैं। भूमि में क्यारियों को लगाने से पहले उच्च प्रकार से खाद का चयन कर लेना फायदेमंद होता है।

बैगन की फसल की रोपाई का सही समय :

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैंगन के पौधे तैयार होने में लगभग 30 से 40 दिन का समय लेते हैं। पौधों में बैगन की पत्तियां नजर आने तथा पौधों की लंबाई लगभग 14 से 15 सेंटीमीटर हो जाने पर रोपाई का कार्य शुरू कर देना चाहिए। 

किसान बैगन की फसल की रोपाई का सही समय जुलाई का निश्चित करते हैं। ध्यान रखने योग्य बात : बैगन की फसल रोपाई के दौरान आपस में पौधों की दूरी लगभग 1 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर रखना उचित होता है। 

किसानों के अनुसार हर एकड़ पर लगभग 7000 से लेकर 8000 पौधों की रोपाई की जा सकती है। किसान बैगन की फसल की उत्पादकता 120 क्विंटल तक प्राप्त करते हैं। 

बैगन की कुछ बहुत ही उपयोगी प्रजातियां हैं, जो इस प्रकार है : पूसा पर्पल, ग्रांउड पूसा, अनमोल आदि प्रजातियां की बुवाई किसान करते हैं।

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बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन:

बैगन की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान हमेशा दोमट मिट्टी का ही चयन करते हैं। बलुई और दोमट दोनों प्रकार की मिट्टियां बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। 

बैगन की फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए  कार्बनिक पदार्थ से निर्मित मिट्टी का भी चयन किया जाता है। खेत रोपण करते वक्त इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि खेतों में जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना चाहिए। 

क्योंकि बैगन की फसल बरसात के मौसम में लगाई जाती है, ऐसे में जल एकत्रित हो जाने से फसल खराब होने का भय होता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैगन की फसल के लिए सबसे अच्छा मिट्टी का पीएच करीब 5 से 6 अच्छा होता है।

बैंगन की फसल के लिए खाद और उर्वरक की उपयोगिता:

बैगन की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ चीजों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा उपयोगी है। जिससे आप बैंगन की फसल की ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता को प्राप्त कर सकेंगे। 

खेतों में आपको लगभग 1 हेक्टेयर में 130 और 150 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर 65 से 75 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल करें। 

40 से 60 किलोग्राम पोटाश खेतों में छोड़े, वहीं दूसरी ओर डेढ़ सौ से दो सौ क्विंटल गोबर की खाद खेतों में भली प्रकार से डालें।

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बैंगन की फसल की तुड़ाई का सही समय:

बैगन की फसल की तुड़ाई करने से पहले कुछ चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए। सबसे पहले आपको तुड़ाई करते समय चिकनाई और उसके आकर्षण को भली प्रकार से जांच कर लेना चाहिए। 

बैगन ज्यादा पके नहीं तभी तोड़ लेनी चाहिए। इससे बैगन में ताजगी बनी रहती है और मार्केट में अच्छी कीमत पर बिकते हैं। बैगन की मांग मार्केट में बहुत ज्यादा होती है। 

बैगन के आकार को जांच परख कर ही तुड़ाई करना चाहिए। बैगन की तुड़ाई करते समय आपको इन चीजो का खास ख्याल रखना चाहिए। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल बैगन की खेती पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। 

जो आपके बहुत काम आ सकती है। हमारे इस आर्टिकल से यदि आप संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया  तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करें।

मई-जून में करें इस बैगन की खेती मिलेगा कम समय में मोटा मुनाफा

मई-जून में करें इस बैगन की खेती मिलेगा कम समय में मोटा मुनाफा

रबी सीजन की गेंहू आदि फसलों की कटाई का समय चल रहा है। किसान अब इसके बाद जायद की विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटेंगे। इसलिए आज हम इस सीजन में की जाने वाली बैगन की खेती की जानकारी प्रदान करेंगे। 

भारत में अधिकांश किसान भाई केवल नीले, गुलाबी और हरे रंग के बैगनों को ही जानते हैं । परंतु, क्या आपने कभी दूध की भांति श्वेत यानी सफेद बैगन के विषय में भी सुना है। 

सफेद बैंगन दिखने में पूर्णतय अंडे जैसा नजर आता है। वर्तमान में इस बैगन की बाजार में मांग बढ़ रही है। भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी सफेद बैंगन की मांग में काफी उछाल आ रहा है। 

बैंगन की यह एक ऐसी किस्म है, जिसकी खेती करके किसान भाई बंपर कमाई कर सकते हैं। किसान भाई इसका हर मौसम में सालभर उत्पादन कर सकते हैं। 

सफेद बैगन की खेती से कम समय में मोटी आय 

बैंगन की इस किस्म की खेती के लिए सबसे बेहतरीन वक्त फरवरी और मार्च को माना जाता है। किसान फरवरी के समापन से लेकर मार्च की शुरुआत तक इसकी बुवाई कर सकते हैं।

हालांकि, भारत के अंदर बहुत सारे ऐसे इलाके भी हैं, जहां सफेद बैंगन की बुवाई दिसंबर माह में की जाती है। जून-जुलाई के महीनों में सफेद बैंगन पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं। 

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इनको आसानी से बाजार में बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है। किसानों के लिए कम समय में अधिक आमदनी के लिए सफेद बैंगन की खेती एक शानदार विकल्प है।

किसान भाई इस तरह करें सफेद बैंगन की बुवाई

बैंगन की इस प्रजाति की बुवाई करने से पूर्व आपको क्यारी तैयार कर लेनी चाहिए। आपको तकरीबन डेढ़ मीटर लंबी और 3 मीटर चौड़ी क्यारी को बनाकर तैयार कर लेना चाहिए। 

इसके बाद आपको मिट्टी को भुरभुरा कर लेना है। अब आपको हर एक क्यारी में तकरीबन 200 से 250 ग्राम डीएपी को डाल देना है। क्यारी में डीएपी डालने के पश्चात एक कतार खींचकर इसमें सफेद बैंगन के बीजों की बुवाई करनी है। इसके बाद कुछ ही दिनों में आपको पौधे निकलते हुए नजर आने लगेंगे।

बैगन का सर्वाधिक उत्पादन कहाँ होता है ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में सफेद बैंगन की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे बहुत सारे राज्यों में की जाती है। परंतु, इसकी सर्वाधिक खेती जम्मू में देखने को मिलती है। 

भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों में सफेद बैंगन की खेती के लिए अधिकाँश किसान जम्मू से ही बीज लाकर इसकी खेती करते हैं। जम्मू के अतिरिक्त देश के बाकी राज्यों में सफेद बैंगन की खेती काफी कम होती है। 

बतादें, कि बैगनी या काले रंग के बैंगने से ज्यादा पौष्टिक तत्व सफेद बैंगन में विघमान होते हैं। बाजारों में इसकी काफी मांग बढ़ने के पीछे लगता है यही कारण है। 

उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पूर्वी जोन में रायबरेली, उन्नाव, चित्रकूट और कानपुर समेत विभिन्न जनपदों में 1 नवंबर से धान की खरीद चालू हो जाएगी। जो कि अगले वर्ष 28 फरवरी तक चलती रहेगी। साथ ही, धान की बिक्री करने के लिए संपूर्ण राज्य में अब तक 1 लाख 66 हजार 645 किसानों ने पंजीकरण करवाया है। उत्तर प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद शुरू हो गई है। सरकार की ओर से धान क्रय केंद्र पर पुख्ता व्यवस्थाऐं की गई हैं। हालांकि, क्रेय केंद्र पर धान बिक्री के लिए बहुत कम तादात में किसान आ रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है, कि अगले एक सप्ताह के उपरांत धान की खरीद में तीव्रता आएगी। क्योंकि इस बार मानसून विलंब से आने के कारण किसानों ने धान की रोपाई विलंभ से आरंभ की थी। दरअसल, अब तक कई क्षेत्रों में धान की फसल पक कर पूरी तरह से तैयार नहीं हो पायी है। वहीं, पश्चमी उत्तर प्रदेश में किसान अगेती धान की रोपाई करने में कामयाब हो गए थे। अब ऐसी स्थिति में वे धान विक्रय के लिए क्रय केंद्रों पर पहुंच रहे हैं।

धान खरीद के लिए राज्यभर में 4000 क्रय केंद्र स्थापित किए गए हैं

साथ ही, क्रय केंद्रों पर किसान भाइयों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो पाए इसके लिए प्रशासन की ओर से पूरी तैयारी की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के मुताबिक, फसल सीजन 2023- 24 के लिए किसानों से 2 केटेगरी के धान खरीदे जाएंगे। इसमें ‘धान कॉमन’ और ‘ग्रेड ए’ धान शम्मिलित हैं। विशेष बात यह है, कि ‘धान कॉमन’ की एमएसपी 2183 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित की गई है। वहीं, ‘ग्रेड ए’ को 2203 रुपये प्रति कुंतल की दर से खरीदा जाएगा। विशेष बात यह है, कि धान खरीदने के लिए पूरे राज्य में 4000 क्रय केंद्र निर्मित किए गए हैं।

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किसानों को पंजीकरण करवाना ही पड़ेगा

यदि किसान भाई एमएसपी पर धान की बिक्री करना चाहते हैं, तो उनको पहले आधिकारिक वेबसाइट https://fcs.up.gov.in/ अथवा मोबाइल एप UP KISAN MITRA पर जाकर पंजीकरण करवाना होगा।

एमएसपी पर धान खरीदी की अंतिम तिथि

साथ ही, किसानों को जानकारी के लिए बतादें कि यूपी सरकार भिन्न-भिन्न जोन में दो फेज में धान की खरीद करेगी। प्रथम फेज के अंतर्गत पश्चिमी जोन में धान की खरीद की जाएगी। इसमें लखनऊ मंडल के बरेली, आगरा, मुरादाबाद, सहारनपुर अलीगढ़, मेरठ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर और झांसी मंडल के समस्त जनपद शम्मिलित हैं। इन जनपदों में 1 अक्टूबर से 31 जनवरी तक एमएसपी पर धान की खरीद की जाएगी।
केंद्र सरकार दिलाएगी महंगाई से निजात देश की राजधानी समेत इन शहरों में 90 रुपए किलो बिकेगा टमाटर

केंद्र सरकार दिलाएगी महंगाई से निजात देश की राजधानी समेत इन शहरों में 90 रुपए किलो बिकेगा टमाटर

केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने ट्वीट कर कहा है, कि दिल्ली और नोएडा के अतिरिक्त आज से पटना, लखनऊ और मुजफ्फरपुर में रियायती दरों पर टमाटर की बिक्री चालू हो गई है। मानसून की दस्तक के साथ ही टमाटर की कीमतों में जो इजाफा चालू हुआ था। वह कम होने का नाम भी नहीं ले रही है बल्कि इसकी कीमतों में और बढ़ोत्तरी भी होती जा रही है। महंगाई का मामला यह है, कि सोमवार को खुदरा बाजार में टमाटर का भाव 250 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच चुका है। विशेष बात यह है, कि टमाटर का यह भाव तकरीबन भारत के सभी प्रमुख शहरों में दर्ज किया गया। परंतु, फिलहाल आम जनता को टमाटर की बढ़ती कीमतों को लेकर चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। सरकार ने टमाटर के बढ़ते दाम पर रोक लगाने के लिए बड़ी योजना बनाई है। अब लोग कम भाव पर टमाटर खरीद पाएंगे।

सरकार ने टमाटर की बढ़ती कीमतों को रोकने की बनाई योजना

मानसून के दस्तक के साथ ही टमाटर की कीमतों में इजाफा शुरू हुआ था, जो कि कम होने का नाम भी नहीं ले रहा है। इसकी कीमत में और बढ़ोत्तरी ही होती जा रही है। महंगाई का आलम यह है, कि शनिवार को खुदरा बाजार में टमाटर का भाव 250 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया। विशेष बात यह है, कि टमाटर का यह भाव तकरीबन भारत के समस्त प्रमुख शहरों में दर्ज किया गया। परंतु, फिलहाल आम जनता को टमाटर की बढ़ती कीमतों को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। सरकार ने टमाटर की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण बनाने के लिए बड़ी योजना बनाई है। फिलहाल, लोग कम कीमत पर टमाटर खरीद सकेंगे। ये भी पढ़े: जानें टमाटर की कीमतों में क्यों और कितनी बढ़ोत्तरी हुई है

केंद्र सरकार दिलाएगी महंगाई से राहत

दरअसल, केंद्र सरकार ने आम जनता को महंगाई से निजात दिलाने हेतु स्वयं टमाटर बेचने का निर्णय किया है। केंद्र सरकार दिल्ली-एनसीआर, पटना और लखनऊ समेत भारत के प्रमुख शहरों में 90 रुपये प्रति किलो की दर से टमाटर बेचेगी। हालांकि, अभी दिल्ली- एनसीआर में भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ मोबाइल वैन माध्यम से टमाटर बेच रहे हैं। नोएडा, दिल्ली और ग्रेटर नोएडा में विभिन्न स्थानों पर महासंघ के द्वारा टमाटर बेचे जा रहे हैं।

मदर डेयरी से संपर्क चल रहा है

केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने ट्वीट कर बताया है, कि दिल्ली और नोएडा के अतिरिक्त आज से पटना, लखनऊ और मुजफ्फरपुर में रियायती दरों पर टमाटर की विक्री चालू हो चुकी है। उन्होंने बताया है, कि एनसीसीएफ कल से दिल्ली में तकरीबन 100 स्थानों पर अपने आउटलेट के जरिए टमाटर बेचना चालू कर देगा। विशेष बात यह है, कि एनसीसीएफ आने वाले दिनों में दिल्ली-एनसीआर के अंतर्गत 400 स्थानों पर मदर डेयरी के साथ मिलकर टमाटर बेचेगा। इसके लिए मदर डेयरी के साथ बातचीत चल रही है। ये भी पढ़े: टमाटर ने इन 2 किसानों का कराया लाखों का फायदा

महाराष्ट्र में टमाटर 150 रुपए किलोग्राम बिका

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर आज टमाटर का औसत भाव 117 रुपये प्रति किलो रहा है। वहीं, अधिकतम भाव 250 रुपये प्रति किलोग्राम और न्यूनतम भाव 25 रुपये प्रति किलोग्राम था। साथ ही, टमाटर का मॉडल प्राइस 100 रुपये प्रति किलोग्राम है। अगर बात भारत के प्रमुख महानगरों की करें तो आज दिल्ली में टमाटर का भाव 178 रुपये किलो, मुंबई में 150 रुपये किलो और चेन्नई में 132 रुपये किलो था। लेकिन, सबसे अधिक महंगा टमाटर उत्तर प्रदेश के हापुड़ में बिका था। यहां पर लोगों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिए 250 रुपये खर्च करने पड़े। वैसे भी मानसून आने के पश्चात टमाटर की कीमत में बढ़ोत्तरी हो जाती है। जुलाई से नवंबर माह के दौरान इसका भाव काफी अधिक ही रहता है।
आलू के बाद अब गेहूं का समुचित मूल्य ना मिलने पर किसानों में आक्रोश

आलू के बाद अब गेहूं का समुचित मूल्य ना मिलने पर किसानों में आक्रोश

उत्तर प्रदेश में आलू का बेहद कम दाम मिलने की वजह से किसानों में काफी आक्रोश है। ऐसी हालत में फिलहाल गेहूं के दाम समर्थन मूल्य से काफी कम प्राप्त होने पर शाजापुर मंडी के किसान काफी भड़के हुए हैं, उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए परेशानियों पर ध्यान देने की बात कही गई है। आलू के उपरांत फिलहाल यूपी के किसान गेहूं के दाम कम मिलने से परेशान हैं। प्रदेश के किसान गेहूं का कम भाव प्राप्त होने पर राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार से गुस्सा हैं। प्रदेश की शाजापुर कृषि उत्पादन मंडी में उपस्थित किसानों ने सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन व नारेबाजी की है। किसानों ने बताया है, कि कम भाव मिलने के कारण उनको हानि हो रही है एवं यदि गेहूं के भाव बढ़ाए नहीं गए तो आगे भी इसी तरह धरना-प्रदर्शन चलता रहेगा। कृषि उपज मंडी में जब एक किसान भाई अपना गेहूं बेचने गया, जो 1981 रुपये क्विंटल में बिका। किसान भाई का कहना था, कि केंद्र सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपये क्विंटल निर्धारित किया गया है। इसके बावजूद भी यहां की मंडी में समर्थन मूल्य की अपेक्षा में काफी कम भाव पर खरीद की जा रही है। उन्होंने चेतावनी देते हुए बताया है, कि सरकार को अपनी आंखें खोलनी होंगी एवं मंडियों पर कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने बताया है, कि सरकार किसानों की दिक्कत परेशानियों को समझें। ये भी देखें: केंद्र सरकार का गेहूं खरीद पर बड़ा फैसला, सस्ता हो सकता है आटा आक्रोशित एवं क्रोधित किसानों का नेतृत्व किसानों के संगठन भारतीय किसान संघ के जरिए किया जा रहा है। संगठन का मानना है कि, सरकार को किसानों की मांगों की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खून-पसीना एवं कड़े परिश्रम के उपरांत भी किसानों को उनकी फसल का समुचित भाव नहीं मिल पा रहा है।

आलू किसानों की परिस्थितियाँ काफी खराब हो गई हैं

उत्तर प्रदेश में आलू उत्पादक किसान भाइयो की स्थिति काफी दयनीय है। आलू के दाम में गिरावट आने की वजह से किसान ना कुछ दामों में अपनी फसल बेचने पर मजबूर है। बहुत से आक्रोशित किसान भाइयों ने तो अपनी आलू की फसल को सड़कों पर फेंक कर अपना गुस्सा व्यक्त किया है। ऐसी परिस्थितियों में विरोध का सामना कर रही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 650 रुपये प्रति क्विंटल के मुताबिक आलू खरीदने का एलान किया है। परंतु, किसान इसके उपरांत भी काफी गुस्सा हैं। कुछ किसानों द्वारा आलू को कोल्ड स्टोर में रखना चालू कर दिया है। दामों में सुधार होने पर वो बेचेंगे, परंतु अब कोल्ड स्टोर में भी स्थान की कमी देखी जा रही है। ऐसी स्थितियों के मध्य किसान हताश और निराश हैं।
उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

आलू की खेती से किसान रबी सीजन में करते हैं, किसानों को इससे काफी मुनाफा अर्जित होता है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि खरीफ की फसलों की कटाई का समय आ चुका है। यूपी की उपजाऊ मृदा से हो रही पैदावार निरंतर विदेशों में लोकप्रियता अर्जित कर रही है। यहां पर उगने वाले आलू की मांग सात समुंदर पार भी हो रही है। प्रथम बार यूपी के आलू को अमेरिका के गुनाया में निर्यात किया गया है। किसानों को अपनी समझ और सूझबूझकर से खेती करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह की भी जरूरत होती है। उत्तर प्रदेश के आलू का दबदबा विदेशों तक भी है। दरअसल, यूपी के आलू को पहली बार हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका भेजा गया है। यूपी के आलू का जलवा विदेशों में भी है। मीडिया खबरों के अनुसार, फार्मर ग्रुप (FPO) की सहायता से 29 मीट्रिक टन आलू अमेरिका के गुयाना में भेजा गया। बतादें, कि इसके साथ ही योगी सरकार का किसानों की आमदनी दोगुनी करने का सपना भी साकार हो रहा है।

आलू का निर्यात अब सात समुंदर पार भी होगा

वाराणसी के एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के उप महाप्रबंधक का कहना है, कि आलू को पहली बार व्‍यापारिक रूप से अमेरिका के गुयाना शहर निर्यात किया गया है। उन्‍होंने बताया है, कि निर्यात किए गए आलू को अलीगढ़ के एफपीओ से खरीद कर शीत गृह में पैक किया गया। 29 मीट्रिक टन आलू समुद्र मार्ग के जरिए गुयाना पहुंचेगा।

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अलीगढ़ में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खोलने की मुहिम

बतादें, कि इसी कड़ी में अलीगढ़ के किसान उद्यमी के साथ-साथ निर्यातक भी बन रहे हैं। अलीगढ़ में आलू के उत्पादन को मंदेनजर रखते हुए एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी अलीगढ़ में कृषि निर्यात केंद्र खोलने की तैयारी कर रहा है। बतादें, कि यदि अलीगढ़ जनपद में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खुलता है, तो जनपद के आसपास के हजारों लोगों को रोजगार का अवसर भी मिलेगा।

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योगी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बिचौलियों को अलग करके किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में एफपीओ के जरिए से किसानों को निर्यातक बनाया जा रहा है। प्रदेश में योगी सरकार एफपीओ एवं किसान समूहों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की तरफ प्रोत्साहन देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। किसानों को विदेशों में निर्यात कर बेहतरीन आमदनी देने वाली फसलों की पैदावार करनी चाहिए। किसान केवल पारंपरिक फसलों पर ही आश्रित ना रहें।
जीरे की खेती कैसे की जाती है?

जीरे की खेती कैसे की जाती है?

जीरा एक मसाला फसल है, जिसकी खेती मसाले के रूप में की जाती है। यह जीरा देखने में बिल्कुल सोंफ की तरह ही होता है, किन्तु यह रंग में थोड़ा अलग होता है | जीरे का उपयोग कई तरह के व्यंजनों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए करते है।  

इसके अलावा इसे खाने में कई तरह से उपयोग में लाते है, जिसमे से कुछ लोग इससे पॉउडर या भूनकर खाने में इस्तेमाल करते है। जीरे का सेवन करने से पेट संबंधित कई बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। जीरे का पौधा शुष्क जलवायु वाला होता है, तथा इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है भारत में जीरे की खेती सबसे अधिक राजस्थान और गुजरात में की जाती है, यहाँ पर पूरे देश का कुल 80% जीरा उत्पादित किया जाता है, जिसमे 28% जीरे का उत्पादन अकेले राजस्थान राज्य में होता है, इसके पश्चिमी क्षेत्र में राज्य का कुल 80% जीरा उत्पादन होता है | वही पड़ोसी राज्य गुजरात में राजस्थान की अपेक्षा अधिक पैदावार होती है | वर्तमान समय में जीरे की उन्नत किस्मो को ऊगा कर उत्पादन क्षमता को 25% से 50% तक बढ़ाया जा सकता है | अधिकतर किसान भाई जीरे की उन्नत किस्मो को उगाकर अच्छा लाभ भी कमा रहे है | यदि आप भी जीरे की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको जीरा की खेती कैसे करें (Cumin Farming in Hindi) तथा जीरा का भाव इसके बारे में जानकारी दी जा रही है।   

जीरे की खेती के लिए मिटटी की आवश्यकता                     

जीरे की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, तथा भूमि का P.H. मान भी सामान्य होना चाहिए | जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है | इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है, तथा अधिक गर्म जलवायु इसके पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है | जीरे के पौधों को रोपाई के पश्चात् 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों की वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान उचित होता है | इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते है |

जीरे की किस्में 

वर्तमान समय में जीरे की कई तरह की उन्नत किस्मो को तैयार किया गया है, जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है। आर. जेड. 19 , जी. सी. 4 , आर. जेड. 209 , जी.सी. 1

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जीरे की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी        

जीरे की फसल करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है। इसके लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के तौर पर 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालकर जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाती है।  खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है। 

फसल में उर्वरक और खाद प्रबंधन 

पलेव के बाद खेत की आखरी जुताई के समय 65 किलो डी.ए.पी. और 9 किलो यूरिया का छिड़काव खेत में करना होता है | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है | मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है| इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं उत्पन्न होती है | इसके अतिरिक्त 20 से 25 KG यूरिया  की मात्रा को पौधों के विकास के समय तीसरी सिंचाई के दौरान पौधों को देना होता है |

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जीरे की बुवाई के लिए बीज दर                

जीरे के बीजों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है| इसके लिए छिड़काव और ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है | ड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए एक एकड़ के खेत में 8 से 10 KG बीजो की आवश्यकता होती है | वही छिड़काव विधि द्वारा बीजो की रोपाई के लिए एक एकड़ के खेत में 12 KG बीज की आवश्यकता होती है | बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें कार्बनडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | छिड़काव विधि के माध्यम से रोपाई के लिए खेत में 5 फ़ीट की दूरी रखते हुए क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है |

बीज की बुवाई 

इन क्यारियों में बीजो का छिड़काव कर उन्हें हाथ या दंताली से दबा दिया जाता है| इससे बीज एक से डेढ़ CM नीचे दब जाता है | इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में पंक्तियो को तैयार कर लेना होता है, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पंक्तियों में बीजो की रोपाई 10 से 15 CM की दूरी पर की जाती है | चूंकि जीरे की फसल रबी की फसल के साथ लगाई जाती है, इसलिए इसके बीजो को नवंबर माह के अंत तक लगाना उचित होता है। 

फसल में सिचांई प्रबंधन  

जीरे के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरुरत होती है।  इसकी प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है, तथा प्रारंभिक सिंचाई को पानी के धीमे बहाव के साथ करना होता है, ताकि बीज पानी के तेज बहाव से बहकर किनारे न आ जाये। इसके पौधों को अधिकतर 5 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई के बाद बाकी की सिंचाई को 10 से 12 दिन के अंतराल में करना होता है |

फसल में खरपतवार नियंत्रण 

जीरे के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक विधि में आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लिया जाता है, जिसे बीज रोपाई के तत्पश्चात खेत में छिड़क दिया जाता है| प्राकृतिक विधि में पौधों की निराई-गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के तक़रीबन 20 दिन बाद की जाती है, तथा बाकी की गुड़ाई को 15 दिन के अंतराल में करना होता है। इसके पौधों को अधिकतम दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। 

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फसल की उपज 

जीरे की उन्नत किस्में बीज रोपाई के तक़रीबन 100 से 120 दिन पश्चात् पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों में लगे बीजो का रंग हल्का भूरा दिखाई देने लगे उस दौरान पुष्प छत्रक को काटकर एकत्रित कर खेत में ही सूखा लिया जाता है। इसके बाद सूखे हुए पुष्प छत्रक से मशीन द्वारा दानो को निकल लिया जाता है। उन्नत किस्मो के आधार पर जीरे के एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 7 से 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है।  जीरा का बाज़ारी भाव 200 रूपए प्रति किलो तक होता है, जिस हिसाब से किसान भाई जीरे की एक बार की फसल से 40 से 50 हज़ार तक की कमाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

योगी सरकार की इस योजना से गौ-पालन करने वालों को मिलेगा अनुदान

योगी सरकार की इस योजना से गौ-पालन करने वालों को मिलेगा अनुदान

नंदिनी कृषक समृद्ध योजना और गौ संवर्धन योजनाओं को संचालित कर रही है। राज्य सरकार इन समस्त योजनाओं के आधार पर किसानों को अथवा डेयरी खोलने वालों को सब्सिड़ी की धनराशि के साथ में कई अन्य तरह की सहायता भी प्रदान कर रही है। 

गौ पालन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार विभिन्न प्रकार की योजनाओं को संचालित कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार का मुख्य उद्देश्य गौ वंश को प्रोत्साहन देने साथ-साथ राज्य में दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी करना है। 

प्रदेश सरकार राज्य में गौ वंशों के पालन के लिए राज्य में गोपालक योजना, नंद बाबा योजना, नंदिनी कृषक समृद्ध योजना एवं गौ संवर्धन योजनाओं को संचालित कर रही है। 

प्रदेश सरकार इन समस्त योजनाओं के आधार पर किसानों को अथवा डेयरी खोलने वालों को सब्सिड़ी की बड़ी धनराशि के साथ में विभिन्न अन्य प्रकार की मदद भी प्रदान कर रही है। 

राज्य सरकार फिलहाल नंदिनी कृषक समृद्धि योजना को संचालित कर रही है। योगी सरकार की तरफ से इस योजना के अंतर्गत 62 लाख रुपये के प्रोजेक्ट पर 50 फीसद अनुदान तक तीन हिस्सों में प्रदान करेगी।

प्रमुख नस्लों की गायों पर मिलेगा अनुदान

उत्तर प्रदेश सरकार इस अनुदान धनराशि को तीन हिस्सों में प्रदान करेगी। परंतु, इसके लिए राज्य सरकार की कुछ प्रमुख शर्तें होंगी। इन शर्तों को पूर्ण करने के पश्चात ही कोई भी आदमी इस योजना का फायदा उठा सकता है। 

दरअसल, प्रदेश सरकार दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से अधिक दूध देने वाली गायों को पालने पर ही धनराशि को आवंटित करेगी। इन प्रजातियों की गायों में स्वदेशी गाय थारपारकर, गिल नस्ल और साहीवाल की गायों को शम्मिलित किया गया है। 

इस योजना का फायदा उठाने के लिए पशुपालकों को तकरीबन 10 इन्हीं नस्लों के बच्चों को दिखाना पड़ेगा, जिसके पश्चात वह अनुदान धनराशि का तकरीबन 25 फीसद तक ले सकेंगे। इस योजना का लाभ उठाने के लिए आपको 25 अक्टूबर तक आवेदन करना पड़ेगा।

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योजना का लाभ लेने के लिए किस तरह अप्लाई करें

आपको इसके लिए इसकी अधिकारिक वेबसाइट www.animalhusb.upsdc.gov.in पर क्लिक करके फॉर्म को भरना होगा। इसके साथ-साथ उनके पास खुद की अथवा लीज पर पशुपालन संबंधी स्थान को दिखाना आवश्यक है। 

इस योजना का फायदा उत्तर प्रदेश राज्य के पंजीकृत किसान ही उठा पाऐंगे। किसानों के पास गौ-पालन से जुड़ा तकरीबन तीन वर्ष का अनुभव होना चाहिए। इसके साथ-साथ कामधेनु का फायद उठा चुके लाभार्थी इसका फायदा नहीं उठा पाऐंगे।

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योजना का लाभ लेने हेतु किन कागजों की आवश्यकता पड़ेगी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आपको इस योजना का फायदा उठाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अथवा केंद्र द्वारा प्रदत्त समस्त अधिकारिक आई-डी कार्ड को अपने पास सुरक्षित रख लें, जिससे आपको आवेदन करते समय किसी भी प्रकार की कोई समस्या न हो। 

इसके लिए आपके पास आधार कार्ड, मूल निवास प्रमाण, जमीन का विवरण, बैंक अकाउंट विवरण, मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज फोटो का होना बेहद आवश्यक है।

टिड्डी दल नियंत्रण को यूपी में खुले कंट्रोल रूम

टिड्डी दल नियंत्रण को यूपी में खुले कंट्रोल रूम

उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में टिड्डी दल पहुंच चुका है, यह बहुत ही चिंताजनक है। प्रदेश सरकार टिड्डी दल पर नियंत्रण करने की पूरी कोशिश कर रही है। संबंधित अधिकारी को इसके रोकथाम के लिए आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। टिड्डी दल की रोकथाम के लिए सीमावर्ती जिले मथुरा,आगरा,झांसी ललितपुर आदि जनपदों के लिए 5 लाख रुपये और अन्य जनपदों के लिए 2 लाख की धनराशि दी गयी है। साथ ही सभी जिला अधिकारियों को कोषागार नियम 27 के अंतर्गत आवश्यकता अनुसार धनराशि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत नियमानुसार व्यय करने के निर्देश दे दिए गए हैं। 

टिड्डी दल पर नियंत्रण के दृष्टिगत प्रदेश स्तर पर एक कंट्रोल रूम की स्थापना कृषि निदेशालय की गई है। जिसका दूरभाषा 0522-2205867 है। किसान भाई सोमवार से रविवार प्रातः 8:00 बजे से रात 8:00 बजे तक दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। टिड्डी दल के प्रकोप से सुरक्षा हेतु जनपद एवं प्रदेश स्तर पर निरंतर निगरानी रखने के लिए आपदा राहत दल का गठन किया गया है।

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निदेशालय स्तर पर गठित आपदा राहत दल में कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) मुख्यालय अध्यक्ष, सहायक निदेशक (कृषि रक्षा) द्वितीय, सहायक निदेशक (कृषि रक्षा) प्रथम सदस्य है, जो प्रदेश स्तर पर टिड्डी दल के रोकथाम के लिए आवश्यक कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे। साथ ही जिले स्तर पर गठित आपदा राहत दल में मुख्य विकास अधिकारी अध्यक्ष, उप कृषि निदेशक, जिला कृषि अधिकारी और कृषि रक्षा अधिकारी सदस्य है, जो टिड्डी दल के प्रकोप से सुरक्षा हेतु आवश्यक उपाय करने के साथ-साथ इसके रोकथाम के लिए समुचित कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे।

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

स्ट्रॉबेरी (strawberry) एक शानदार फल है। जिसकी खेती समान्यतः पश्चिमी ठन्डे देशों में की जाती है। लेकिन इसकी बढ़ती हुई मांग को लेकर अब भारत में भी कई किसान इस खेती पर काम करना शुरू कर चुके हैं। पश्चिमी देशों में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जो वहां पर किसानों के लिए लाभ का सौदा है। इसको देखकर दुनिया में अन्य देशों के किसान भी इसकी खेती शुरू कर चुके हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती करना और उसे खरीदना एक स्टेटस का सिंबल है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार दिनोंदिन इस खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। इसके लिए प्रदेश में नई जमीन की तलाश की जा रही है जहां स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सके। [caption id="attachment_10376" align="alignright" width="225"]एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry) एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले उद्यान विभाग की गहन रिसर्च के बाद यह पाया गया है कि प्रयागराज की जमीन और जलवायु स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है। इसके लिए सरकार ने प्रायोगिक तौर पर कार्य करना शुरू किया है और बागवानी विभाग ने 2 हेक्टेयर जमीन में खेती करना शुरू कर दी है, जिसके भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बागवानी विभाग के द्वारा प्रयागराज की जमीन की स्ट्रॉबेरी की खेती करने के उद्देश्य से टेस्टिंग की गई थी जिसमें बेहतरीन परिणाम निकलकर सामने आये हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़े सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही प्रयागराज में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती आरम्भ की जाएगी।

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स्ट्रॉबेरी की खेती करना बेहद महंगा सौदा है। लेकिन इस खेती में मुनाफा भी उतना ही शानदार मिलता है जितनी लागत लगती है। स्ट्रॉबेरी की खेती में लागत और मुनाफे का अंतर अन्य खेती की तुलना में बेहद ज्यादा होता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की एक एकड़ में खेती करने में लगभग 4 लाख रुपये की लागत आती है। जबकि इसकी खेती के बाद किसानों को प्रति एकड़ 18-20 लाख रुपये का रिटर्न मिलता है, जो एक शानदार रिटर्न है। प्रयागराज के जिला बागवानी अधिकारी नलिन सुंदरम भट्ट ने बताया कि एक हेक्टेयर (2.47 एकड़) खेत में लगभग 54,000 स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जा सकते हैं और साथ ही इस खेती में ज्यादा से ज्यादा जमीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। [caption id="attachment_10375" align="alignleft" width="321"]आधा स्ट्रॉबेरी दृश्य (Half cut strawberry view) आधा स्ट्रॉबेरी आंतरिक संरचना दिखा रहा है (Half cut strawberry view)[/caption] खेती विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है। यह भारतीय किसानों के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत में आजकल हो रहे दोहन के कारण भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर जा रहा है, जिसके कारण ट्यूबवेल सूख रहे हैं और सिंचाई के साधनों में लगातार कमी आ रही है। इसलिए भारतीय किसान अन्य खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भी पानी का उचित प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी की उलब्धता बनाई जा सके।    

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स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए रेतीली मिट्टी या भुरभुरी जमीन की जरुरत होती है। इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 12 से लेकर 18 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान हो तो बहुत ही अच्छा होता है। यह परिस्थियां उत्तर भारत में सर्दियों में निर्मित होती हैं, इसलिए सर्दियों के समय स्ट्रॉबेरी की खेती किसान भाई अपने खेतों में कर सकते हैं और मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। इजरायल की मदद से भारत में अब ड्रिप सिंचाई पर भी काम तेजी से हो रहा है, यह सिंचाई तकनीक इस खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस माध्यम से सिंचाई करने पर सिंचाई की लागत में किसान भाई 30 प्रतिशत तक की कमी कर सकते हैं। इसके साथ ही भारी मात्रा में पानी की बचत होती है। ड्रिप सिंचाई का सेट-अप खरीदना और उसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है। आजकल बाजार में तरह-तरह के ब्रांड ड्रिप सिंचाई का सेट-अप किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं। [caption id="attachment_10377" align="alignright" width="300"]एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (strawberries in a nursery pot) एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (Strawberries in a nursery pot)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी अधिकारियों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में एक एकड़ जमीन में लगभग 22,000 पौधे या एक एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 54,000 पौधे  लगाए जा सकते हैं। इस खेती में किसान भाई लगभग 200 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज ले सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती में लाभ का प्रतिशत 30 से लेकर 50 तक हो सकता है। यह फसल के आने के समय, उत्पादन, डिमांड और बाजार भाव पर निर्भर करता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती सितम्बर और अक्टूबर में शुरू कर दी जाती है। शुरूआती तौर पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को ऊंची मेढ़ों पर उगाया जाता है ताकि पौधों के पास पानी इकठ्ठा होने से पौधे सड़ न जाएं। पौधों को मिट्टी के संपर्क से रोकने के लिए प्लास्टिक की मल्च (पन्नी) का उपयोग किया जाता है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जनवरी में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं जो मार्च तक उत्पादन देते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में स्ट्रॉबेरी की तेजी से डिमांड बढ़ी है। स्ट्रॉबेरी बढ़ती हुई डिमांड भारत में इसकी लोकप्रियता को दिखाता है। [caption id="attachment_10379" align="alignleft" width="300"]स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry) स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी विभाग ने बताया कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को स्ट्रॉबेरी के पौधे 15 से 20 रूपये प्रति पौधे की दर से मुहैया करवाने जा रही है। सरकार की कोशिश है कि किसान इस खेती की तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हो ताकि किसान भी इस खेती के माध्यम से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सरकार के द्वारा सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे पौधों को प्राप्त करने के लिए प्रयागराज के जिला बागवानी विभाग में पंजीयन करवाना जरूरी है। जिसके बाद सरकार किसानों को सस्ते दामों में पौधे उपलब्ध करवाएगी। पंजीकरण करवाने के लिए किसान को अपने साथ आधार कार्ड, जमीन के कागज, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक की पासबुक, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ इत्यादि ले जाना अनिवार्य है। [caption id="attachment_10380" align="alignright" width="300"]पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries) पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries)[/caption] जानकारों ने बताया कि कुछ सालों पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में खास तौर पर सहारनपुर और पीलीभीत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की गई थी। वहां इस खेती के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। सबसे पहले इन जिलों के किसानों की ये खेती करने में सरकार ने मदद की थी लेकिन अब जिले के किसान इस मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इसको देखते हुए सरकार प्रयागराज में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने को लेकर बेहद उत्साहित है। सरकार के अधिकारियों का कहना है, चूंकि इस खेती में पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है और पानी का प्रबंधन भी उचित तरीके से किया जा सकता है, इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के साथ लगभग 2 दर्जन जिलों में किया जा रहा है और अब कई जिलों में तो प्रयोग के बाद अब खेती शुरू भी कर दी गई है।
अब समय पर खाद आपूर्ति सुनिश्चित करेगी उत्तर प्रदेश सरकार, कृषि मंत्री और रेल मंत्री के बीच हुई बातचीत

अब समय पर खाद आपूर्ति सुनिश्चित करेगी उत्तर प्रदेश सरकार, कृषि मंत्री और रेल मंत्री के बीच हुई बातचीत

किसानों के लिए खाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है, जिसके बिना आज के आधुनिक युग में खेती कर पाना बहुत हद तक संभव नहीं है। इतने महत्वपूर्ण घटक होने के बावजूद कई बार देखा गया है, कि किसानों को खाद समय से नहीं मिल पाती। जिसके कारण किसानों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान झेलना पड़ता है। इसलिए अब उत्तर प्रदेश की सरकार ने किसानों को समय पर खाद उपलब्ध करवाने के लिए कमर कस ली है। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा है, कि यह सुनिश्चित किया जा रहा है, कि किसानों को समय पर गुणवत्तापूर्ण खाद मिले। ताकि किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी न झेलनी पड़े, साथ ही किसानों को खाद की कमी से किसी भी प्रकार का नुकसान न हो।

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किसानों को मिलेगा आसानी से खाद-बीज, रेट में भारी गिरावट इसी सिलसिले में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से बातचीत की है। जिसमें उन्होंने ट्रेन के माध्यम से खाद की ढुलाई का मुद्दा उठाया है। साथ ही खाद की ढुलाई में हो रही देरी की तरफ भी ध्यान आकृष्ट कराया है। कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को बताया है, कि वर्तमान में डीएपी और यूरिया खाद की ढुलाई में बंदरगाह से स्टेशन तक खाद की बोरियों को पहुंचाने में 8 से 10 दिन का समय लग जाता है। साथ ही कई स्टेशन ऐसे हैं, जहां प्रशासन ने खाद की ढुलाई को प्रतिबंधित कर दिया है। जिसके कारण खाद की ढुलाई में अनावश्यक समय लगता है। इस वजह से किसानों को समय पर खाद नहीं मिल पाती और किसानों को बुवाई करते समय परेशानी का सामना करना पड़ता है।

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किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार इस पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने खाद की ढुलाई में लगने वाले समय को कम करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय रेल अपनी तरफ से भरपूर कोशिश करेगी, जिससे उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में खाद को उपलब्ध करवाने में कम से कम समय लगे। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कृषि मुख्य व्यवसाय है। यहां 140 लाख हेक्टेयर जमीन में रबी की फसल बुवाई होती है। इसके साथ ही 26 लाख हेक्टेयर जमीन में गन्ने की फसल ली जाती है। फसलों को बिना खाद के उपजाना आसान नहीं है। इसलिए राज्य में खाद की भारी मांग रहती है। इसलिए रेलवे को चाहिए कि उत्तर प्रदेश में खाद की सप्लाई समय पर सुनिश्चित करे, जिससे किसान आसानी से बुवाई कर पाएं।

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अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया कि इस साल रबी की फसल के समय खाद की आपूर्ति बहुत ही धीमी गति से हो रही है। जिसके कारण रबी की फसल की बुवाई प्रभावित हो रही है। उर्वरक आपूर्तिकर्ता कंपनियों ने जानकारी दी कि भारत के पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाहों जैसे- कीनाडा, कृष्णापटनम, गंगावरम, विशाखापत्तनम और पारादीप में खाद के स्टॉक रखे हुए हैं। वहां से रेक उपलब्ध न हो पाने के कारण खाद की जल्द से जल्द आपूर्ति करने में देरी हो रही है। इन बंदरगाहों में 149,800 मिलियन टन खाद वितरण के लिए रखी गई थी। जिसमें से नवंबर तक मात्र 82,143 मिलियन टन खाद की आपूर्ति की जा सकी है। शेष खाद की आपूर्ति जल्द से जल्द पूरी करवाने की कोशिश की जा रही है। सूर्य प्रताप शाही ने केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मांग की है, कि दैनिक आधार पर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को खाद के 10-12 रैक उपलब्ध कराएं जाएं। फिलहाल राज्य को प्रतिदिन 3 से 4 रेक ही उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। उस खाद को सहकारी समितियों के माध्यम से जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाया जा रहा है। रेल मंत्री ने कहा है, कि अभी फिलहाल 25 से 30 रेक रास्ते में हैं जो जल्द ही अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच जाएंगे। खाद की मुख्य आपूर्तिकर्ता संस्था इफको(IFFCO) लगातार उत्तर प्रदेश के किसानों की मांग को पूरा करने की कोशिश कर रही है।